The life story of Shri Shirgul Devta and his Siblings

जय देवा शिरगुला

श्री शिरगुल देव तथा उनके भाई- बहनों की जीवन गाथा

यह सुलतानों के शासन काल की १३वीं सदी की गाथा है, उन दिनों दिल्ली में तुर्कों का शासन था, जिन्हें दास वंश के शासक भी कहा जाता था। उनका शासन १२०६ से १२९० ई. तक चला। जनश्रुति के अुनसार जिसमें तुर्कों के साथ युद्ध का वर्णन आता है और देवताओं की पूजा में भी यह तथ्य विद्यमान है। इससे इस तथ्य की पुष्टि होती है कि श्री शिरगुल देव तथा उनके भाई बहनों का अवतार तुर्की सल्तनत (१२०६ से १२१० ई.) के शासन काल में इन महान आत्माओं ने अवतार लिया था। जिला सिरमौर की राजगढ़ तहसील मे राजगढ़-हाब्बन रोड पर १८ कि.मी. की दूरी पर स्थित शाया नामक गांव स्थित है| वहां पर श्री भुकडू राजा राज्य करते थे, जो की सन्तान न होने से दुखी थे| उन्होंने सन्तान की प्राप्ति के कई उपाय किए परन्तु कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ। फिर उन्हें मालुम हुआ कि कशमीर के देश नाथ कौल उर्फ देशु पण्डित बहुत विद्वान पंडित है। वह सन्तान न होने के प्रति अवगत एवं उपाय कर सकते है। इसी चिन्ता को लेकर भुकडू महाराज ने काशमीर की राह ली|

shirgul maharaj

यह सुलतानों के शासन काल की १३वीं सदी की गाथा है, उन दिनों दिल्ली में तुर्कों का शासन था, जिन्हें दास वंश के शासक भी कहा जाता था। उनका शासन १२०६ से १२९० ई. तक चला। जनश्रुति के अुनसार जिसमें तुर्कों के साथ युद्ध का वर्णन आता है और देवताओं की पूजा में भी यह तथ्य विद्यमान है। इससे इस तथ्य की पुष्टि होती है कि श्री शिरगुल देव तथा उनके भाई बहनों का अवतार तुर्की सल्तनत (१२०६ से १२१० ई.) के शासन काल में इन महान आत्माओं ने अवतार लिया था। जिला सिरमौर की राजगढ़ तहसील मे राजगढ़-हाब्बन रोड पर १८ कि.मी. की दूरी पर स्थित शाया नामक गांव स्थित है| वहां पर श्री भुकडू राजा राज्य करते थे, जो की सन्तान न होने से दुखी थे| उन्होंने सन्तान की प्राप्ति के कई उपाय किए परन्तु कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ। फिर उन्हें मालुम हुआ कि कशमीर के देश नाथ कौल उर्फ देशु पण्डित बहुत विद्वान पंडित है। वह सन्तान न होने के प्रति अवगत एवं उपाय कर सकते है। इसी चिन्ता को लेकर भुकडू महाराज ने काशमीर की राह ली|

काशमीर जो कि यहां से अनुमानित ७०० कि.मी. का पैदल तथा उबड़-खाबड़ उत्तराई व चढ़ाई वाला अति दूर्गम सफर, तय करके कुछ ही दिनों में काशमीर पहुंच गए। पण्डित जी को सोने की बजीऊरी (सीताफल के आकार की) भेंट की और सजल नयनों से अपनी दास्तान सुनाई। पण्डित जी शिव उपासक, तांत्रिक तथा ज्योतिषि विद्या के ज्ञाता थे। उन्होंने भुकडू महाराज को घर का दोष, खोट बताया और उपाय भी। उन्होंने कुल बदलने की बात भी कही कि आपको ब्राह्मण कुल की कन्या से शादी करनी होगी। पण्डित जी ने भुकडू महाराज के प्रति हवन यज्ञ कर, हवन की राख तथा मेवा मन्त्रित कर महाराज को दिया और कहा कि अपनी दोनों रानियों को खिलाना शायद पहली रानी के भी सन्तान हो जाए। जो सन्तान आपके घर में होगी व पूर्ण कलाओं से परिपूर्ण देव रूप होगी। चिंता के गहरे सागर में डूब श्री भुकडू महाराज ने घर की राह ली और कुछ दिनों पश्चात घर पहुंच गए। अति दुखी मन से उन्होंने अपनी प्रिय रानी दयमन्ती को सारी बातें बताई जो पण्डित जी ने भुकडू महाराज को बताई थी और दूसरी शादी की बात भी। रानी साहिबा ने कहा महाराज मुझे सौतन आने का दुख नहीं बल्कि खुशी होगी अगर आपके सन्तान हो जाती है।

रानी दमयन्ती पास ही के गांव मनौण पहूंची और सजल नयनों से अपनी दुख भरी दास्तान श्री लोज पण्डित को बताई और महाराज के लिए उनकी बहन दुदमा की मांग की। विवाह के पश्चात वह मेवा मिष्ठान जो काशमीर के पण्डित जी ने दिया था दोनों रानियों को खिलाया जिससे दोनों रानियां गर्भवती हो गई। दोनों ने पुत्रों को जन्म दिया, कुछ समय पश्चात दोनों पुत्रों का नामकरण किया गया, दुदमा के पुत्र का नाम कुल में जन्में पहले पुत्र होनें के कारण ‘‘श्रीकुल’’ रखा गया और रानी दमयन्ती जिसका प्रसव सरांह से आते समय सरांहटी नामक स्थान, जो शाया से ८ किलोमीटर है, अति पीड़ा के कारण दमयन्ती ने प्रभु की अराधना की और बिजली गिरने के धमाके से प्रसव हुआ था। इसलिए उसका नाम ‘‘बिजट’’ रखा गया। दोनों रानियों, (दुदमा के तीन, और दमयन्ती के दो), बच्चे हो गए| भुकडू महाराज खुशियों से झूम उठे| परन्तु विद्याता को उनकी खुशी रास न आई।

कुछ ही समय पश्चात दोनों ही रानियां स्वर्ग सिधार गई और बच्चों को दु:ख और कष्ट के गहन सागर में डुबो गई। अब भुकडू महाराज के उपर चिन्ता का पहाड़ टूट पड़ा। बच्चे बिखर गए| दमयन्ती के बच्चों को उनके नाना, देवी सिंह उर्फ देवू ठाकुर सरांह ले गए और दुदमा के बच्चों को उनके मामा, लोज पण्डित अपने घर मनौण ले गए। लोज पण्डित की पत्नि, ब्राह्मणी स्वार्थी व क्रुर स्वभाव की थी। वह नहीं चाहती थी कि इन बच्चों को मनौण ले जाया जाए और उनकी देखभाल की जाए। उसने उन बच्चों को सताना आरम्भ कर दिया। वे बेचारे पशु के पास जाते और सतू व सुखी रोटी ही उन्हें दी जाती थी| और अगर पशु भुखे रहते या जल्दी घर आ जाते तो उन्हें मार खानी पड़ती थी। उन्हें निकालने तथा जान से मारने के प्रयास भी किए गए परन्तु मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है| उसके प्रयास विफल हुए।

अब बच्चे बड़े हो गए। घर का सारा कार्य उनसे लिया जाने लगा। फागू क्यार में १७-१८ हाली हल लगाने हेतु बुलाए गए शिरगुल भी उनके साथ उतना ही हल चला रहा था जितना शेष हाली ब्रह्माणी अन्य को घी- सीड़ लाई और बच्चों को सतु के गोले जिसमें मक्खी आदि कीट उसमें सम्मलित थे। सभी हाली उसे देख कर आश्चर्य चकित हो गए। परन्तु कोई भी उसे कहने का साहस नहीं कर सका। शिरगुल ने कहा, मामी अगर सतु लाए थे तो हाथ धोने को पानी तो लाना था। ब्राह्मणी ने उत्तर दिया, ‘‘अगर तू इतना सूचा (पवित्र) है तो पानी यहीं पर पैदा क्यों नहीं करता?’’ शिरगुल को अति मलाल हुआ और उसने क्रोध वश जमीन में लात मारी और पानी की धारा बहने लगी। बच्चे पशुओं को ताली, तीसरी की तरफ ले गए और सतु के गोले पत्थर में लेप दिए। उन पत्थरों में मक्खी आदि कीट के पंखो के निशान आज भी विद्यमान है। छोटे भाई चन्देश्वर को भूख सताने लगी अब उसको क्या खिलाएं, शिरगुल को क्रोध आया और चन्देश्वर से कहा कि इन पशुओं को घर ले जाना और स्वंय अदृश्य हो गए। आसमान में काली घटा छा गई और अन्धेरा हो गया। चन्देश्वर पशु घर ले गया और ब्राह्मणी को पशु बांधने हेतू आवाज लगाई। ब्राह्मणी पशु बांधने आई, मधुमक्खी की भिनभिनाहट के साथ काली का वाहन आया, शिरगुल की छोटी बहन को भी देवी शक्ति आई और उसमें सम्मलित हो गई तथा अदृश्य हो गई। यह मक्खियां ब्राह्मणी को चिपक गई और ब्राह्मणी को यमपुरी भेज दिया। शावगा क ऊपर अति भंयकर ओलावृष्टि हुई और सारी फसलें नष्ट हो गई। जब शिरगुल देव का क्रोध शांत हुआ तब आसमान से बादल हटने लगे और धूप निकल गई।

श्री शिरगूल देव मनौण में प्रकट हो गए उनकी छोटी बहन भी मानव काया में आकर प्रकट हो गई। यह चमत्कार देख कर लौग हैरान हो गए और यह समाचार नौ परगनों में हवा के झौंके की तरह फैल गया और लौग मनौण में एकत्रित हो गए। शिरगुल आदि बच्चों को शाया ले जाया गया और राज तिलक किया गया। शिरगुल महाराज शाया में रहे चन्देश्वर और उनकी छोटी बहन जिसका नामकरण नहीं हुुआ था गाय के साथ रहने के कारण लोग उसे गराली के नाम से ही पुकारते थे। बाद में उसे गराई या गुड़ाली के नाम से ही पुकारा गया। चन्देश्वर के साथ मामे (लोज पण्डित) की देख भाल हेतु मनौण चले गए।

चूड़धार में चूडिय़ा दानव रहता था उसने भी आतंक मचा रखा था। पास की बस्ती में रहने वाले लोगों के पशु व आदमी को अपना शिकार बनाने लगा। लोगों में हाहाकार मच गया और शिरगुल के पास अपनी चिन्ता प्रकट की। श्री शिरगुल देव सरांह आए और बिजट देव को चूडिय़ा दानव के आतंक से अवगत किया और चूड़धार के लिए प्रस्थान किया, चूडिय़ा दानव के साथ घमासान युद्ध हुआ। अन्तत: चूडिय़ा दानव चूड़धार से भाग ही रहा था कि श्री बिजट देव ने उसका रास्ता रोक दिया। चूडिय़ा दानव ने श्री बिजट देव पर वार किया वह वहीं पर मुर्छित हो कर गिर पड़े। जब शिरगुल देव ने श्री बिजट देव को मुर्छावस्ता में देखा तो अति दु:ख के कारण अचेत हो गए। लोगों में हाहाकार मच गया, कुछ समय पश्चात दोनों भ्राता जाग उठे और बिजट देव को भी शक्ति आ गई और देव रूप हो गए। श्री शिरगुल महाराज ने धरती से एक चुटकी मिट्टी उठाई और आसमान की और फैंकी आसमान को मेघराज ने घेर दिया, श्री शिरगुल महाराज ने फिर एक चुटकी मिट्टी उठाई कि मेेघराज ने ब्रज छोड़ा और चूडिय़ा दानव के पिछे भागता हुआ उसको धराशाई कर दिया।

श्री शिरगुल महाराज की ख्याति निरन्तर बढऩे लगी यदि किसी को शिव रचित सृष्टि अर्थात भूत-प्रेत, पिशाच आदि का कोप हो तो श्री शिरगुल महाराज उन्हें उससे मुक्त कर देते थे। सभी परगनों तथा दूर-दराज के क्षेत्रों तक श्री शिरगुल देव की किरती तथा गुणगान होने लगा। यह समाचार दिल्ली दरबार तक पहुंच गया जैसा कि मैंने आरम्भ में लिखा है कि दिल्ली में तुर्की शासन था तथा गुप्तचरों द्वारा उन्हें सूचना मिली की शिरगुल नाम के व्यक्ति को देविय शक्ति का संचार हुआ है। दिल्ली सरकार ने उन्हें विशेष मिटिंग हेतू दिल्ली बुलाया श्री शिरगुल देव, चन्देश्वर और ३०-४० लोग उनके साथ हाट हेतु दिल्ली के लिए चल पड़े। जब दिल्ली पहुंचे तो गुप्तचरों ने उनके आगमन की सूचना दिल्ली सल्तनत को दे दी। तुर्की शासकों ने उनकी परीक्षा लेने के लिए जमना के किनारे गाय को हलाल करने हेतू एक बुचड़ को भेजा और गुप्तचर भी साथ भेजे।

श्री शिरगुल देव का काफिला जमना के किनारे पहुंचा, तो उसी समय वह कसाई गाय को हलाल करने के लिए उल्टा वार करने लगा, वह वार गाय को न लगकर उसकी गर्दन में लगा और सिर धड़ से अलग होकर श्री शिरगुल महाराज के चरणों के पास आ गया। एक अन्य घटना में बनिये का नुकसान होना आदि अन्य भी कई चमत्कार हुए। गुप्त चरों ने सारी घटनाओं की सूचना दिल्ली सल्तनत को दे दी। दिल्ली सरकार ने अपने सिपाहियों को उन्हें चमड़े की बैडिय़ों में बांध कर उन्हें विशेष जेल में बंदी बनाने के आदेश दिए। सिपाहियों ने उन्हें चमड़े की बेडिय़ों में बांध कर जेल में डाल दिया। उसी जेल में श्री डूम देव, श्री महासू, बागड़ के गुग्गा चौहान आदि थे। उनको भी चमड़े की बेडिय़ाँ डाली हुई थी। श्री शिरगुल महाराज ने उन्हें अपना परिचय दिया उन्होनें ने भी अपनी व्यथा सुनाई और विचार विमर्श किया कि किस प्रकार जेल से छुटकारा पाया जाए।

श्री शिरगुल देव की दृष्टि झाडू मार रही जमादारनी पर पड़ी, और उसको खिडक़ी के पास बुलाया, और कहा कि बहन कोई पैना नश्तर लाकर दें। प्रात: जब वह झाडू देने जेल के पास आई तो उसने वह नश्तर(छूरा), खिडक़ी के रास्ते अन्दर डाला, और स्वयं अपने काम पर व्यस्त हो गई। श्री शिरगुल देव ने अन्य बंदियों से कहा कि, हम में से कोई बेडिय़ां काटने का प्रयास करें तो वह शकित हीन नहीं होगा, बल्कि वह हमसे भी अधिक शक्तिवान होगा ,और उसकी मान्यता सर्वत्र होगी। गुग्गा पीर ने मुंह में चाकू लेकर, श्री शिरगुल महाराज की बेडिय़ा कांट दी। फिर तो सभी केदियों की बेडिय़ां काट कर जेल से मुक्त हो गए। जब वह उत्तर दिशा के खाली मैदान में पीपल के पास पहुंचे, तो तुर्कों ने हमला कर दिया। श्री शिरगुल महाराज ने धरती से धूल उठाई, और उनकी तरफ फैंक दी, सिपाहियों को आपस में ही एक- दुसरे को कैदी दिखने लगे, और आपस में एक दूसरे को मारने लगे। इस प्रकार तुर्कों के काफी सिपाही मारे गए। जब तुर्को को पता लगा कि हमारी सेना के बहुत से सिपाही मारे गए है, और उनका बाल भी बाका नहीं हुआ। फिर तो तुर्की शासक भयभीत हो गए, और क्षमा याचना करने लगे जिसे शिरगुल महाराज ने स्वीकार किया।

उसी समय चूड़धार से चूहडू ने गोहड़ी (छोटा पत्थर), भेजी जो पीपल में लगी। श्री शिरगुल महाराज ने उसे उठाया और कहने लगे की, हमारे वीर योद्धा चुहरू पर आफत आई है हमें शीघ्र वापिस जाना चाहिए। तुर्कों ने उन्हें घोड़े भेंट किए और श भी। श्री शिरगुल देव को शांवली घोड़ी भेंट की । वापिस आने ही लगे थे की भंगायण भी सामने आ गई और, विनती करने लगी की भईया मैं आपके साथ चलूंगी। श्री शिरगुल देव ने धरती से मिट्टी उठाई और उसकी तरफ उड़ा दी। फिर तो उसको भी देवी शक्ति आ गई और उनके आगे जाने लगी। जो भी जीव उसकी राह में आने लगा वह स्वर्ग लोक को चला गया। जब शिरगुल देव ने ऐसा कोप देखा तो उसकी शक्ति छीन ली। फिर तो वह क्षमा याचना करने लगी श्री शिरगुल महाराज ने कहा कि बहन, अगर तेने इस तरह की हरकत की तो हमारे पहाड़ी इलाके में तो गिनी चुनी ही, आबादी शेष ही नहीं बचेगी। भंगायण माता ने वचन दिया, ‘‘भईया मैं आप की आज्ञा के बिना किसी को नहीं सताऊंगी, हां अगर मुझे किसी के लिए पुकारोगे तो अवश्य आऊंगी।’’ श्री शिरगुल देव ने कहा बहन, उस घर के लोगों को सचेत करेगी, यदि वह तेरा उपाय करती है तो उसके घर को छोडऩा पड़ेगा। भंगायण ने हाथ जोड़ कर कहा भईया मैं ऐसा ही करूंगी।

श्री शिरगुल देव का काफिला शाया पहुंचा। लोगों ने उनका स्वागत किया और चूड़धार पर आक्रमण की योजना बनाई। चन्देवश्र का काफिला मैहरोग होते चूड़ पहुंचा और श्री शिरगुल महाराज सरांह होकर चूड़ पहुंचे और बिजट महाराज को भी साथ लाए जब काला बाग पहुंचे और चुहरू को चोखट दानव के साथ मुकाबला करते देखा तो धरती माँ की धूल उठाई और उसकी और फैंक दी कि चुहरू का परिवार शिला में परिवर्तित हो गया। श्री शिरगुल महाराज का काफिला आगे बढ़ा जब चढ़ाई वाली तंग गली में पहुंचे तो श्री शिरगुल देव ने तुर्कों द्वारा भेंट की गई शावली घोड़ी को शिला में परिवर्तित कर दिया आज भी लोग उसे पूजते हैं और फूल आदि चढ़ाते है। चूड़धार में चौखट दानव के साथ घमासान युद्ध हुआ अन्तत: वह चौखट की ओर भाग ही रहा था कि श्री शिरगुल देव ने शिलाओं के मध्य तंग गली में पकड़ लिया और खडग़ का ऐसा प्रहार किया कि उसका सिर धड़ से अलग हो गया और खडग़ जा कर शिला में लगा जिससे शिला में भी निशान पड़ गया, आज भी वह विद्यमान है। चौखट दानव का सिर तो वहां पड़ा परन्तु धड़ अदृश्य हो गया जो छाजपुर जा कर गिरा। आज भी वह विनशिरा के नाम से विख्यात है और छाजपुर के एक पेड़ में स्थित है। चूड़धार भय मुक्त हो गया, लोगों ने चूड़ चान्दनी को तीर्थ के रूप में मानने की आग्रह किया परन्तु वहां पानी का अभाव था श्री शिरगुल देव ने मानसरोवर से पानी ला कर चूड़ चान्दनी को तीर्थ बना कर लोगों का कल्याण किया। इस प्रकार अपने दायित्व को निभाकर सदेह परमधाम चले गए। श्री बिजट देव, श्री चन्देश्वर देव, गुड़ाई, बिजाई, भंगायण आदि सभी सदेह लोप हो गए और अपने-अपने स्थान ग्रहण किए। (विस्तार से विवरण शिरगुल महिमा में पढ़ें) लोगों ने उनकी मुर्तियां बनाई और मन्दिरों का निर्माण किया, पूजा अर्चना होने लगी। अदृश्य शक्तियों (भूत-प्रेत, पिशाच, डाकनी, शंकनी आदि) से लोगों को काफी राहत मिली।

तुकों के शासन के पश्चात खिलजी वंश १२९० से १३२० ई का शासन आया उन्होंने हिन्दुओं के धर्म में दखल दिया। १३५१ में फिरोज शाह तुगलक गदी पर बैठा, यह कट्टर सुनी मुसल्मान था। जिसने हिन्दुओं को बहुत सताया, मन्दिर लूटे नष्ट किये। देव भक्तों ने मुर्ति को छुपा लिया तथा धरती में गाड़ दिया। फिरोज शाह ने १३८३ तक शासन किया उसके बाद अबू बकर, नासिरूद्धिन, मुहम्मद शाह, १४१४ के पश्चात सैयद व लौदी वंश (१४१४ से १५२६ ई. तक) की सल्तनत रही उन्होंने भी हिन्दुओं को सताया, तत्पश्चात् १५४० के बाद हिन्दुओं के भाग्य का सितारा उदय हुआ जब शेरशाह सुरी गुद्दी पर बैठे। फिर मुर्तियों की खोज आरम्भ हुई मन्दिर बने, पूजा अर्चना आरम्भ हुई। बिजट महाराज, गुड़ाई व बिजाई की मूर्ति भोना गाड़ में एक गुफा में मिली। श्री शिरगुल देव व चन्देश्वर देव की मूर्ति फागू क्यार में जमीन मिली इनके मन्दिर बने और पूजा अर्चना होने लगी।शिरगुल मंदिर चूड़ धार, शाया (राजगढ़) गेलिओ(नोहराधार)देवा मानल में आज भी कुलिष्ट मान्य हैं।

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